धनौलती – यहाँ धरती से मिलता है स्वर्ग

भारत विविधताओं का देश है. यहाँ प्राकृतिक एवं ऐतिहासिक स्थलों की भरमार है. मुझे हमेशा से घूमने का शौक रहा है. मैंने भ्रमण के दौरान भारत के कई पर्यटन और ऐतिहासिक स्थलों का दौरा किया है. इन्ही पर्यटन स्थलों में से कुछ स्थलों का विवरण अपने शब्दों में देना चाहूँगी.

धनतौली और केम्पटी फॉल

मन बहुत चंचल होता है …जाना था जापान पहुँच गए चीन समझ गए ना …!!!! देहरादून पहुँच कर हम ऋषीकेश, मुनी की रेती और देवप्रयाग तक घूम कर फिर वापस आ गए है अपने अगले पड़ाव पर जाने के लिए …देहरादून के पहाड़ों की ओर जाने वाली बसों के अड्डे से हमने मसूरी जाने के लिए बस ली. देहरादून से विदा लेकर बस मे बैठे और हरी भरी वादियों में बहती हुई ठंडी हवाओं को महसूस करने लगे जो हमारे कानों में जैसे कुछ कहने लगती है . प्रकृति के गीत गाने लगती है . जिग जैग सड़क पर गुजर रही बस की खिड़की के बाहर का नज़ारा हरदम बदलता है… कभी दिल को जोरों से धड़का देने वाली खाई की गहराई नजर आती है तो कभी बादलों को चूमते हुए पहाड़ों की ऊँचाई … मैदान का दामन छोड़ कर कब हम पहाड़ों की आगोश में आ जाते है कुछ पता ही नहीं चलता . अगर आप निजी वाहन से जा रहे हो तो रस्ते में एक बड़ा सा सुंदर मन्दिर पड़ता है जहाँ आप थोड़ी देर रुक कर वादियों से मन ही मन में कुछ संदेश दे सकते हैं(

धीरे धीरे छोटी छोटी बस्तियों को पार करते हुए हमारी बस मसूरी पहुँच ही गई . ये वृतांत मेरे 2001 के दौरे का है . मेरी कम्पनी में से आवंटित होली डे होम में हम रुके . हमारा कमरा होटल के सबसे ऊपर वाली मंजि़ल पर था . खिड़की से पर्दा हटाते ही बाहर दूर देहरादून वेली नजर आई . रात में जब पूरे देहरादून की बत्तियां रोशन हो चुकी तो ये नजर कुछ ऐसा लग रहा था की चाँद पुरी सितारों की बारात लेकर ज़मीन पर आ गया हो . यादें कितनी सुहानी हुआ करती है ना ?

हम सुबह सुबह पहुँच चुके थे . फ्रेश हो कर नीचे माल रोड की सड़क पर स्थित बाज़ार में टहलने निकल पड़े . मई का महीना होने के बावजूद यहाँ की सर्दी वडोदरा की दिसम्बर की सर्दी के बराबर थी . इस समय आइसक्रीम या सोफ्टी खाने का मजा कुछ और ही है . कैमल बेक और मॉल रोड की सड़क की खास विशेषता यह है की यहाँ एक और ही मकान है और दूसरी और सुंदर और मजबूत रैलिंगें बनी हुई है जहाँ से आप पुरी वेली का नज़ारा ले सकते हो . एक खास अंतर पर बैठ के देखने के लिए भी सुचारु व्यवस्था है . हर जगह से दृश्य लगातार बदलते नजऱ आयेंगे … कभी साफ सुथरी दिखती पहाड़ की वादी पल भर में ही जैसे बादलों की चुनर से अपना चेहरा छुपा लेती है . अभी तेज चमकती धुप होती है तो दोपहर बाद ज़ोरदार बारिश भी हो सकती है . पहाड़ों के वातावरण की ये तासीर आप सभी जगह पर महसूस कर सकते हो …हो सके तो बड़ी सुबह ही घूमने निकल जाओ और दोपहर तक वापस भी आ जाओ .

दूसरे दिन हम साइकिल रिक्शा में बैठ कर मुनिसिपल गार्डन गए . तकरीबन दो तीन किलो मीटर की दूरी पर यह सुंदर उद्यान है . जिसमे एक ग्लास हाऊस है . सुंदर पेड़ पौधे लगे है . बोटिंग की भी सुविधा मौजूद है . लेकिन सबसे रुचिकर तो यहाँ तक पहुँचने का रास्ता ही है . बस्ती पीछे छूट जाती है . इक्के दुक्के प्राइवेट बंगलो ही दिखाई देते है . होती है सिफऱ् हरी भरी वादी और उसकी बोलती हुई खामोशी …मकानों की बनावट गौर करने लायक है . पहाड़ों की ढलान पर ऊपर से नीचे तक बने मकान बहुत सुंदर लगते है .

यहाँ पर मुख्य राज्य परिवहन के बस अड्डे से दो छोटे प्रवास की सुविधा है . एक कम्प्टी फाल के लिए है . दिन में दो बार जा सकते है . एक बस सुबह आठ बजे जाती है जो दोपहर तक वापस ले आती है . दूसरी दोपहर में चलती है जो शाम को वापस ले आती है . हम सुबह में ही चल दिए . मसूरी से तकरीबन 15 किलोमीटर की दूरी पर और समुद्र की सतह से 4500 मीटर की ऊंचाई पर स्थित यह जल प्रपात है .मसूरी तक आता हुआ नज़ारा यहाँ कुछ अपनी तासीर बदल लेता है . पहाड़ की चोटी से छलांग लगाकर एक झरना सीधे नीचे गिर रहा है …यही है कम्प्टी फाल . काफी नीचे तक चल कर जाना पड़ता है .अच्छी खासी पैरों की कसरत हो जाती है . नीचे एक बड़ा सा तालाब बन जाता है और नीचे जाकर फिर वह यमुना नदी में विलीन हो जाता है