ठंडक का अहसास कराता खज्जियार लेक!

गर्मी के मौसम में आप अगर ठंडक का अहसास करना चाहते हैं, तो आपको पहाड़ी इलाकों का रूख जरूर करना चाहिए। उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश के ऐसे बहुत से स्थान हैं, जहां गर्मी की छुट्टियां लगते ही चहल-पहल बढ़ जाती है। यहां की पथरीली मिट्टी की भीनी-भीनी सौंधी महक के क्या कहने…।

दूर-दूर तक फैली कोमल-मनमोहक हरियाली के बीच मन मचलाने वाली रंगीन शाम सभी को पसंद होती है। ऐसे में खजियार में बिताई गई छुट्टियां आपके लिए यादगार साबित होगी।

चीड़ और देवदार के ऊंचे-लंबे, हरे-भरे पेड़ों के बीच बसा खजियार दुनिया के 160 मिनी स्विटजरलैंड में से एक है। यहां आकर पर्यटकों को आत्मिक शांति और मानसिक सुकून मिलता है। अगर आप अप्रैल के बाद मई-जून की झुलसाने वाली गर्मी छुटकारा पाना चाहते हैं, तो यह स्थान आपके लिए बिलकुल आपके सपनों के शहर जैसा ही है।

पहाड़ी स्थापत्य कला में निर्मित 10वीं शताब्दी का यह धार्मिक स्थल खजी नागा मंदिर के नाम से जाना जाता है। यहां नागदेव की पूजा होती है। नई दिल्ली से करीब 560 किलोमीटर की दूरी पर स्थित यह स्थान खूबसूरती और हरियाली के मामले में अपना अलग महत्व रखता है।

वैसे तो यहां सर्दी के मौसम में बेहद ठंड रहती है। इसलिए अप्रैल से जून के महीनों में यहां आना सबसे यादा अछा समझा जाता है।

यहां चीड़ और देवदार के पेड़ों के बीच स्थित झील पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र है। इस पांच हजार वर्गफुट क्षेत्रफल में फैली झील को खजियार लेक के नाम से जाना जाता है। झील के बीचोबीच स्थित टापू पर बैठकर सैलानी घंटों इस प्रकृति की अनुपम धरोहर को निहारते रहते हैं। यही कारण है कि चंबा के तत्कालीन राजा ने खजियार को अपनी राजधानी बनाया था।

जब आप गर्मी के मौसम में शाम के समय हल्के कपड़ों में टहलने के लिए निकलते हैं तो यहां की ठंडी और अजीब-सी नशीली हवाएं तन और मन दोनों को मदहोश कर देती हैं। रोमांच के शौकीन लोग पहाड़ी पगडंडियों पर चलकर ट्रैकिंग का मजा ले सकते हैं, लेकिन हमें इस बात का भी ध्यान रखना होगा कि यहां कब और किसी जंगली जानवर से सामना हो जाएं। इसलिए हमें सचेत रहकर यहां की नशीली हवाओं का लुत्फ उठाना होगा।

यहां के सार्वजनिक निर्माण विभाग के रेस्ट हाऊस के पास स्थित देवदार के छह समान ऊंचाई की शाखाओं वाले पेड़ों को पांच पांडवों और छठी द्रोपदी के प्रतीकों के रूप में माना जाता है। यहां से एक किमी की दूरी पर कालटोप वन्य जीव अभ्यारण्य में 13 समान ऊंचाई की शाखाओं वाले एक बड़े देवदार के वृक्ष को मदर ट्री के नाम से जाना जाता है।

यहां पशु-पक्षी प्रेमी सैलानियों को कई दुर्लभ जंगली जानवर और पक्षियों के दर्शन हो जाते हैं। स्विज राजदूत ने यहां की खूबसूरती से आकर्षित होकर 7 जुलाई 1992 को खजियार को हिमाचल का मिनी स्विटजरलेंड की उपाधि दी थी। यहां आकर ऐसा लगता है मानो प्रकृति ने झील के चारों ओर हरी-भरी मुलायम और आकर्षक घास की चादर बिछा रखी हो। यहां का नजदीकी हवाई अड्डा कांगड़ा का गागल जो कि 12 किमी, नजदीकी रेलवे स्टेशन कांगड़ा 18 किमी की दूरी पर स्थित हैं। सड़क मार्ग से सीधा यहां पहुंचा जा सकता है।

सड़क मार्ग से यहां आने के लिए चंबा या डलहौजी पहुंचने के बाद मुश्किल से आधा घंटे का समय 

लगता है।

चंडीगढ़ से 352 और पठानकोट रेलवे स्टेशन से मात्र 95 किलोमीटर की दूरी पर स्थित खजियार में खजी नागा मंदिर की बड़ी मान्यता है। मंदिर के मंडप के कोनों में पांच पांडवों की लकड़ी की मूर्तियां स्थाति हैं। मान्यता है कि पांडव अने अज्ञातवास के दौरान यहां आकर ठहरे थे।