विश्वविद्यालय अनुदान आयोग द्वारा “उच्च शिक्षा संस्थानों का साइबर सुरक्षा सशक्तिकरण” पर वेबिनार का आयोजन

देश और देशवासियों की उपलब्धियों को उजागर करने के लिये भारत सरकार ने 75 सप्ताह तक चलने वाले अभियान आजादी का अमृत महोत्सव का शुभारंभ किया है। इसी अभियान के क्रम में विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) गतिविधियों की एक पूरी श्रृंखला शुरू कर रहा है, जिसका आरंभ ‘साइबर सेक्योरिटी ऑफ हायर एजुकेशन इंस्टीट्यूशंस’ (उच्च शिक्षा संस्थानों का साइबर सुरक्षा सशक्तिकरण) विषय पर एक जागरूकता वेबिनार से किया जा रहा है। इसके तहत उच्च शिक्षा संस्थानों के लिये साइबर सुरक्षा को और सुगम, आसानी से उपलब्ध और अपनाने योग्य बनाने का लक्ष्य है।

अपने सम्बोधन में यूजीसी के सचिव प्रो. रजनीश जैन ने पैनल में शामिल सभी लोगों का स्वागत किया और उनका परिचय दिया। उन्होंने कहा कि वेबिनार का संदर्भ इस जरूरत से जुड़ा है कि साइबर सुरक्षा के प्रति जागरूकता फैले, क्योंकि महामारी के बाद सूचना प्रौद्योगिकी पर निर्भरता बढ़ गई है। उन्होंने कहा कि महामारी ने उच्च शिक्षा को साइबर-स्पेस में प्रवेश करा दिया है, जिसके कारण उच्च शिक्षा के लिये साइबर सुरक्षा के मुद्दे अहम हो गये हैं। उन्होंने कहा कि जरूरत इस बात की है कि हम साइबर सुरक्षा के मुद्दों को कैसे हल करें तथा कैसे साइबर स्वच्छता को कायम रखें।

प्रधानमंत्री कार्यालय के राष्ट्रीय साइबर समन्वय केंद्र के राष्ट्रीय साइबर सुरक्षा समन्वयक ले.जन. (डॉ.) राजेश पंत (सेवानिवृत्‍त) ने मुख्य वक्तव्य दिया। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि साइबर अपराध अर्थव्यवस्था और राष्ट्रीय सुरक्षा के लिये खतरा है। उन्होंने उच्च शिक्षा संस्थानों की साइबर सुरक्षा का विशेष उल्लेख किया, क्योंकि ये संस्थान निजी सूचना और बौद्धिक सम्पदा की बुनियाद होते हैं। उन्होंने संस्थानों की ऐसी अवसंरचनाओं को रेखांकित किया, जिनके कारण संस्थान साइबर अपराधों का शिकार हो जाते हैं। उन्होंने इन समस्याओं का समाधान करने के उपाय करने पर भी बल दिया। उन्होंने साइबर स्वच्छता केंद्र से जुड़ी चालू और प्रस्तावित सरकारी पहलों का भी हवाला दिया। उन्होंने बताया कि आईआईटी कानपुर को राष्ट्रीय ब्लॉकचेन परियोजना और मालवेयर-पॉश का दायित्व दिया गया है। उन्होंने अपने वक्तव्य के अंत में नये हालात में खुद को गतिशील रखने के दो मंत्र दियेः निजी स्वच्छता और साइबर स्वच्छता।

इलेक्ट्रॉनिक्‍स एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय के अधीन माय-गव के मुख्य कार्यकारी अधिकारी तथा एन-ई-जीडी के अध्यक्ष एवं मुख्य कार्यकारी अधिकारी अभिषेक सिंह ने अपने वक्तव्य में साइबर सुरक्षा के महत्‍व पर जोर दिया, क्योंकि साइबर-स्पेस पर हमारी निर्भरता बढ़ती जा रही है। उन्होंने साइबर सुरक्षा, साइबर हमलों, साइबर धोखाधड़ी और साइबर युद्ध जैसे मुद्दों को उठाया। इस हवाले से उन्होंने कहा कि उच्च शिक्षा संस्थानों को सुरक्षित रहने के लिये कदम उठाने पड़ेंगे। उन्होंने साइबर अपराध से जुड़े विभिन्न पक्षों और उनसे सुरक्षा सहित साइबर सुरक्षा से जुड़ी तमाम प्रक्रियाओं की चर्चा की। उन्होंने कहा कि भारत सरकार की साइबर सुरक्षित भारत योजना का उद्देश्य साइबर सुरक्षा के प्रति लोगों को जागरूक बनाना है।

गृह मंत्रालय के अधीन भारतीय साइबर अपराध समन्वय केंद्र (आई4सी), साइबर और सूचना सुरक्षा (सीआईएस) के उप सचिव दीपक विरमानी ने कहा कि गृह मंत्रालय के सीआईएस ने साइबर अपराधों को रोकने के लिये कई कदम उठाये हैं। उन्होंने कहा कि भारतीय साइबर अपराध समन्वय योजना (आई4सी) का लक्ष्य साइबर अपराधों को रोकना है। उन्होंने योजना के सात चरणों का उल्लेख किया, जिसमें पुलिस कर्मियों और सरकारी कर्मियों का प्रशिक्षण भी शामिल है। उन्होंने विभिन्न पोर्टलों और हेल्पलाइन नंबरों का उल्लेख किया, जहां से लोग मदद ले सकते हैं। उन्होंने कहा कि अक्टूबर 2021 के बाद से हर महीने साइबर जागरूकता दिवस मनाया जा रहा है। अपने वक्तव्य में उन्होंने यूजीसी की सराहना की कि वह साइबर सुरक्षा पाठ्यक्रम और साइबर स्वच्छता पर प्रस्तावित पुस्तिकाओं के जरिये साइबर सुरक्षा के बारे में उच्च शिक्षा संस्थानों को जागरूक करने के कदम उठा रहा है।

भारतीय योजना एवं प्रशासन संस्थान, नई दिल्ली के ई-शासन केंद्र की समन्वयक डॉ. चारू मलहोत्रा ने वेबिनार-पूर्व प्रश्नोत्तरी के विश्लेषण के जरिये साइबर सुरक्षा के नतीजों को प्रस्तुत किया। नतीजों को उच्च शिक्षा संस्थानों के साथ साझा किया गया। उन्होंने साइबर सुरक्षा पर उच्च शिक्षा संस्थानों की मौजूदा स्थिति और उनकी तैयारियों के बारे में बताया।

राष्ट्रीय फोरेंसिक विज्ञान विश्वविद्यालय, गांधीनगर के प्रो. नवीन चौधरी ने अपने वक्तव्य में साइबर खतरों पर प्रकाश डाला। उन्होंने इस संदर्भ में शिक्षा संस्थानों और अनुसंधान केंद्रों में साइबर सुरक्षा के प्रति कोताही के मामलों के बारे में बताया। उन्होंने साइबर सुरक्षा के प्रारूप और उस पर विस्तृत दृष्टिकोण प्रस्तुत किया।

राष्ट्रीय विधि संस्थान विश्वविद्यालय, भोपाल के राजीव गांधी राष्ट्रीय साइबर विधि केंद्र के अध्यक्ष डॉ. अतुल कुमार पाण्डेय ने उच्च शिक्षा संस्थानों में साइबर खतरों की संभावनाओं पर चर्चा की तथा साइबर सुरक्षा के महत्व को उजागर किया। अपने वक्तव्य में उन्होंने विभिन्न पक्षों पर प्रकाश डाला, जैसे विषयवस्तु की सुरक्षा, निजता की सुरक्षा तथा साइबर सुरक्षा के लिये क्षमता निर्माण।

पैनल में शामिल वक्ताओं के सम्बोधन के बाद उच्च शिक्षा संस्थानों के फैकल्टी सदस्यों ने प्रश्न पूछे और वक्ताओं ने उनके उत्तर दिये।

वेबिनार में साइबर सुरक्षा से जुड़े सभी प्रासंगिक विषयों पर चर्चा की गई, जिसके तहत उच्च शिक्षा संस्थानों पर उसके प्रभाव और सुरक्षा की आवश्यकता को रेखांकित किया गया। यह वेबिनार उच्च शिक्षा संस्थानों को सशक्त बनाने की दिशा में उठाया गया पहला कदम है। इसके जरिये संस्थाओं को साइबर सुरक्षा के बारे में जागरूक और संवेदनशील बनाने का अवसर मिलता है।

सुभाष सरकार ने समावेशी शिक्षा के लिए सहायक टेक्नोलॉजी इनोवेशन शोकेस को संबोधित किया

शिक्षा राज्य मंत्री श्री सुभाष सरकार ने आज नीति आयोग के अटल इनोवेशन मिशन के सहयोग से शिक्षा मंत्रालय के स्कूल शिक्षा एवं साक्षरता विभाग द्वारा आयोजित समावेशी शिक्षा के लिए सहायक टेक्नोलॉजी इनोवेशन शोकेस को संबोधित किया।

श्री सुभाष सरकार ने नई शिक्षा नीति-2020 के प्रावधान के बारे में चर्चा की, जो समान तथा समावेशी शिक्षा की अनिवार्यता पर जोर देती है, ताकि प्रत्येक नागरिक को राष्ट्र के विकास के लिए सपने देखने, फलने-फूलने और योगदान करने का समान अवसर मिले। उन्होंने कहा कि स्कूल तथा स्कूल परिसरों को विशेष जरूरतों वाले सभी बच्चों को उनकी आवश्यकताओं के अनुरूप सुविधा प्रदान करने के लिए तैयार किया जा रहा है, जिससे कक्षा में उनकी पूर्ण भागीदारी और समावेशन सुनिश्चित हो सके।

सहायक प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में इनोवेशन की आवश्यकता पर जोर देते हुए अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद (एआईसीटीई) के चीफ इनोवेशन ऑफिसर डॉ. अभय जेरे ने इनक्यूबेशन तथा एक्सेलेरेशन सपोर्ट के माध्यम से सहायक-तकनीकी नवाचारों को आगे बढ़ाने के लिए भारतीय सांकेतिक भाषा (आईएसएल) में पाठ्यपुस्तकों के रूपांतरण और मंत्रालय के इनोवेशन इको-सिस्टम के बारे में चर्चा की।

सोशल अल्फा के संस्थापक श्री मनोज कुमार ने इस बात पर जोर दिया कि शिक्षा के लिए सहायक तकनीक को न केवल एक सामाजिक उद्यम के रूप में देखा जाना चाहिए, बल्कि इसका अपना एक ठोस व्यवसाय मॉडल है, जिसे और भी अधिक विकसित करने की आवश्यकता है।

इस अवसर पर विश्व स्वास्थ्य संगठन के असिस्टीव टेक्नोलॉजी, मेडिकल डिवाइसेज एंड डायग्नोस्टिक्स के प्रमुख श्री चपल खसनबीस ने सहायक प्रौद्योगिकी तथा सर्वोत्तम वैश्विक तौर तरीकों तक पहुंच के बारे में चर्चा करते हुए इस बात पर जोर दिया कि भारत वास्तव में समावेशी कैसे बन सकता है।

इस आयोजन का मुख्य आकर्षण 12 स्टार्ट-अप्स द्वारा प्रस्तुतीकरण था, जिसमें भारत के युवा उद्यमियों के दिमाग द्वारा तैयार किए गए एप्लीकेशन या उपकरणों के रूप में शीर्ष समाधानों का एक समूह था। ये युवा दिमाग ऑटिज्म, डिस्लेक्सिया, हियरिंग एंड स्पीच इम्पेयरमेंट डिसऑर्डर, विजुअल इम्पेयरमेंट डिसऑर्डर, सेरेब्रल पाल्सी आदि जैसी विभिन्न अक्षमताओं से पीड़ित बच्चों की शिक्षा में सहायता के लिए सामाजिक रूप से प्रासंगिक समाधान प्रदान करने के लिए आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस जैसी अत्याधुनिक तकनीकों का लाभ उठा रहे हैं।

इस कार्यक्रम में स्कूलों के युवा इनोवेटरों के इनोवेशन को भी दिखाया गया। अटल टिंकरिंग लैब के बच्चों ने इनोवेटिव डिवाइस से लेकर साइन लैंग्वेज को स्पीच में बदलने के लिए अपने इनोवेशन को एक ऐसे डिवाइस में पेश किया, जो किसी किताब या अखबार में छपे टेक्स्ट को स्कैन करके ऑडियो क्लिप में बदल देता है।

आईआईटी दिल्ली के प्रोफेसर पी.वी.एम. राव द्वारा संचालित और एनआईटी, दुर्गापुर के प्रो. अनुपम बसु, आईआईटी मद्रास के प्रो. अनिल प्रभाकर और प्रो. सुजाता से बने एक पैनल ने समावेशी शिक्षा के लिए आवश्यक अनुसंधान तथा नवाचारों एवं साझेदारी के बारे में चर्चा में भाग लिया। प्रो. राव ने सहायक उपकरणों में अनुसंधान को बढ़ावा देने तथा पाठ्यक्रम में इसे शामिल करने की आवश्यकता पर ध्यान केंद्रित किया। उन्होंने एक वास्तविक तौर पर समावेशी शिक्षा के लिए परीक्षाओं तथा मूल्यांकन में लचीलेपन और विभिन्न पहलुओं को ध्यान में रखने की आवश्यकता के बारे में चर्चा की। प्रो. प्रभाकर ने अपनी चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि एक देश के रूप में हमारे पास सहायक प्रौद्योगिकियों में कई समाधान हैं, हमें बड़े पैमाने पर समाधान को स्वीकार्य बनाने के लिए बड़े पैमाने पर पहुंच बनाने और कार्यात्मक अक्षमताओं को दूर करने पर ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता है। उन्होंने कॉलेजों और विश्वविद्यालयों में छात्रों की जरूरतों के बारे में अनुमान लगाने की आवश्यकता के बारे में भी बात की, जो फिलहाल स्कूलों में हैं। प्रो. सुजाता ने सहायक उपकरण परिदृश्य पर विवरण प्रस्तुत किया, जहां एक ओर कम तकनीक और कम लागत वाले उपकरणों के साथ समाधान मिलता है, वहीं दूसरी ओर, उच्च तकनीक तथा महंगे सहायक उपकरण भी हैं। आईआईटी मद्रास में आर2डी2 केंद्र में अनुसंधान के लिए समाधानों को प्राप्त करने का सामर्थ्य, उसके बारे में जागरूकता, पहुंच तथा उपयुक्तता जैसी चुनौतियों पर ध्यान केंद्रित किया गया है।

अटल इनोवेशन मिशन के मिशन निदेशक डॉ. चिंतन वैष्णव ने इनोवेटरों की सराहना की और बताया कि शिक्षा में सहायक तकनीक के लिए एक इनोवेशन इकोसिस्टम कैसे बनाया जा सकता है। उन्होंने एआईएम के इनक्यूबेशन केंद्रों और सामुदायिक इनोवेशन केंद्रों के इनोवेशन नेटवर्क के माध्यम से समर्थन पर जोर दिया।

कार्यक्रम का समापन करते हुए शिक्षा मंत्रालय के अपर सचिव श्री संतोष सारंगी ने सहायक प्रौद्योगिकी नवाचारों को मुख्य धारा में लाने की चुनौतियों और भविष्य के मार्ग के बारे में चर्चा की। उन्होंने समाधानों को आगे बढ़ाने और संस्थागत बनाने में मंत्रालय की भूमिका पर भी प्रकाश डाला।

स्टार्ट-अप को बढ़ावा देने और नवाचारों को दर्शाने के लिए एक मंच प्रदान करने के उद्देश्य से डिज़ाइन किए गए इस कार्यक्रम को काफी सराहा गया। कार्यक्रम के समापन से पहले यूट्यूब व्यूज ने 2 लाख से अधिक व्यूज को पार कर लिया।

शिक्षा मंत्रालय की संयुक्त सचिव सुश्री रितु सेन ने अपने समापन भाषण में देश के ग्रामीण और दूरस्थ भाग में विशेष जरूरतों वाले बच्चों की शीघ्र पहचान करने और सहायता प्रदान करने के लिए तकनीक-आधारित क्रियाकलापों का लाभ उठाने के लिए निरंतर कार्य करने का आह्वान किया। उन्होंने इस बात पर भी जोर दिया कि शिक्षा मंत्रालय योग्यता के आधार पर प्रोडक्ट पायलट को लागू करने के लिए इन स्टार्ट-अप के साथ मिलकर काम करेगा और क्षेत्र से जुड़ी चुनौतियों के समाधान के लिए इसी तरह के कई आगामी आयोजनों का संकेत दिया।