बिफरती-बिखरती कांग्रेस को साधने शिमला पहुंचे शुक्ला

॥> क्या शुक्ला सियासी दक्षता से भेद पाएंगे बागियों की बगावत?

मोहिंद्र प्रताप सिंह राणा
सम्पादक, ग्राम परिवेश

कांग्रेस और भाजपा में बगावत का कोलाहल इतना बढ़ गया कि बड़े नेताओं की पकड़ से भी खिसकता जा रहा है। बागी नेता पार्टी के बड़े नेताओं को आंखे तरेर रहे हैं और बिना लिहाज के दो टूक जवाब दे रहे हैं। हालांकि कांग्रेस में बगावत की स्वर संख्या कम है लेकिन इतने जरूर है कि वक्त रहते शांत नहीं किए तो देश भर में डूबती कांग्र्रेस को हिमाचल में भी नुक्सान पहुंचा सकते हैं। यही कारण है कि कांग्रेस हाईकमान ने राजीव शुक्ला को शिमला भेजा है। यह ठीक है कि कांग्रेस में आठ या नौ प्रभावशाली बागी है परंतु क्या इन बागियों का नाम इतना बड़ा है कि वह बड़े पैमाने पर सियासी समीकरण को बिगाड़ सके? अगर हम इनकी पृष्ठभूमि देखें तो इन में से अधिकतर ऐसे हैं जो स्व. वीरभद्र सिंह के तेज से ही तेजस्वी कहलाते रहे थे, जमीन पर उनका अपना कोई महत्व नहीं था या है।

कांग्रेस के बागियों की फेहरिस्त में सबसे बड़ा नाम है गंगूराम मुसाफिर। मुसाफिर वीरभद्र की सरकारों में बड़े पदों पर रहे और उन्हीं के वर्दहस्त से बड़ा नाम भी कमाया। आज के बदले राजनीतिक परिप्रेक्ष्य में गंगूराम मुसाफिर पच्छाद से आजाद चुनाव लड़ कर चुनाव जीतने या चुनावी समीकरण बदलने की क्षमता रखते हैं ऐसा नहीं लगता है। सिरमौर में नरेंद्र मोदी की सरकार द्वारा हाटी समुदाय को जनजातीय दर्जा देने के बाद वहां पर ‘हाटी और माटी’ की भावना चरम पर है और बेचारे गंगूराम मुसाफिर ना तो हाटी और ना ही वहां की माटी के हैं और साथ ही उनके सिर पर स्व. राजा वीरभद्र सिंंह का वर्दहस्त भी नहीं है। अकेले मुसाफिर में ना धनबल का सामथ्र्य है और जनबल जुटाने की कुव्वत है।

कांग्रेस बागियों में दूसरा बड़ा नाम है जगजीवन पाल, जो कांगड़ा के सुलह से निर्दलीय ताल ठोंक रहे हैं। पाल का नाम अखबारों की सुर्खियों के लिए जरूर बड़ा है परंतु जमीन पर वोट बटोरने और चुनावी मंच सजाने की ताकत नहीं है। जगजीवन पाल भी राजा वीरभद्र सिंह की ऊर्जा से ऊर्जावान रहे लेकिन अब वह पावर हाऊस नहीं है।

कांग्रेस से एक ऐसा बागी नेता जरूर है जो अपने चुनाव क्षेत्र में कांग्रेस के उम्मीदवार की उम्मीदों पर पानी फेर सकता है। चौपाल से सुभाष मंगलेट का आजाद चुनाव लडऩा कांग्रेस के लिए खतरे की घंटी है। मंगलेट अपने बूते पर चुनाव लडऩे की कुव्वत रखते हैं और उनका जनाधार भी है परंतु क्या राजीव शुक्ला या अलका लाम्बा मंगलेट को कांग्रेस के पक्ष में बैठाने दांव पेच लगा सकेंगे? राजीव शुक्ला पर तो हमीरपुर सदर की सीट पर जिताऊ उम्मीदवार आशीष शर्मा, निष्ठावान कुलदीप पठानिया और दिग्गज अमिता की टिकट काटने और पुष्पेन्द्र वर्मा जैसे अराजनीतिक प्रत्याशी को चुनावी अखाड़े में उतारने पर लोग ऊंगलियां उठा रहे हैं।

यही हाल भाजपा का है बेशक उनके पास जे.पी. नड्डा हैं, ऊर्जावान केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर हैं परंतु यह नेता अभी करिश्माई नहीं
हैं। इस परिस्थितियों में इस बार के चुनाव जनता के विवेक और सियासी समझ ही टिके लगते है।

साभार : ग्राम परिवेश

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