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आईआईटी मंडी टीम ने आईओटी के उपयोगों के लिए वायरलेस पावरिंग और संचार प्रौद्योगिकी विकसित की

मंडी : भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान मंडी के शोधकर्ता आने वाले कल की तकनीक इंटरनेट ऑफ थिंग्स के उपयोगों के लिए कार्य सक्षम रिमोट पावरिंग और संचार प्रौद्योगिकी विकसित करने की दिशा में शोध कार्य करते रहे हैं। इस शोध कार्य के निष्कर्ष वायरलेस नेटवर्क में प्रकाशित किए जा चुके हैं। डॉ सिद्धार्थ सरमा, सहायक प्रोफेसर, स्कूल ऑफ कंप्यूटिंग एंड इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग, आईआईटी मंडी के मार्गदर्शन और उनके छात्र शिवम गुजराल, पीएच.डी स्कॉलर, स्कूल ऑफ कंप्यूटिंग एंड इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग, आईआईटी मंडी के सहयोग से यह शोध किया गया है। यह जानकारी संस्थान के एक प्रवक्ता ने दी।
प्रवक्ता ने बताया कि इंटरनेट ऑफ थिंग्स (आईओटी) कुछ वस्तुओं (”थिंग्सÓÓ) का संग्रह है जो इंटरनेट के माध्यम से एक दूसरे से डेटा आदान-प्रदान कर सकती हैं। आईओटी डिवाइस में ‘स्मार्टÓ घर के सामान्य घरेलू उपकरणों से लेकर अत्याधुनिक औद्योगिक और वैज्ञानिक उपकरण आते हैं। इन ‘स्मार्ट थिंग्सÓ में सेंसर, चिप्स और सॉफ्टवेयर होते हैं जिन्हें चाहिए पावर और हर समय अन्य उपकरणों के साथ संचार में रहना भी आवश्यक है। लेंकिन बैटरी जैसे बिजली के सरल स्रोत ऐसे उपयोगों के लिए अनुपयुक्त हो सकते हैं क्योंकि आईओटी को निरंतर पावर चाहिए और फिर इनमें से कुछ ‘चीजेंÓ एम्बेडेड या छिपी हो सकती हैं जिसके चलते बैटरी बदलना कठिन होता है। इसलिए पूरी दुनिया में दूरस्थ संचार प्रौद्योगिकी को पावर के रिमोट विकल्पों से जोडऩे पर शोध हो रहे हैं।
उन्होंने बताया कि अपने शोध के बारे में शिवम गुजराल, पीएच.डी. स्कॉलर, स्कूल ऑफ कंप्यूटिंग एंड इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग, आईआईटी मंडी ने कहा, हम ने एक कॉपरेटिव मॉडल का विकास किया है जिसमें बैकस्कैटर कम्युनिकेशन और रेडियोफ्रीक्वेंसी एनर्जी हार्वेस्टिंग (आरएफ-ईएच) डिवाइस एक साथ काम करते हुए समय और एंटीना वेट जैसे संसाधनों का अधिक उपयुक्त आवंटन करते हैं।ÓÓ
प्रवक्ता ने बताया टीम ने पावर के ऐसे दो विकल्पों पर शोध किया – रेडियो फ्रीक्वेंसी एनर्जी हार्वेस्टिंग (आरएफ-ईएच) और बैकस्कैटर कम्युनिकेशन। आरएफ-ईएच में एक डेडिकेटेड ट्रांसमीटर आईओटी डिवाइस को रेडियो तरंगों के माध्यम से एनर्जी देता है। ये संचार के लिए मोबाइल फोन में उपयोगी तरंगों की तरह होती हैं। बैकस्कैटर संचार में पहले की तरह रेडियो तरंगों के माध्यम से पावर दिया जाता है लेकिन यह एक डेडिकेटेड ट्रांसमीटर के साथ/बिना होता है। इसके बजाय आईओटी ऑब्जेक्ट्स को पावर देने के लिए रिफ्लेक्शन और बैकस्कैटर के माध्यम से आसपास उपलब्ध आरएफ सिग्नल, जैसे कि वाईफाई, सेल फोन सिग्नल, आदि का लाभ लिया जाता है।
उन्होंने कहा कि आरएफ-ईएच और बैकस्कैटर डिवाइसों की अपनी क्षमताएं और कमियां हैं। उदाहरण के लिए यदि आरएफ-ईएच की तुलना में बैकस्कैटर काफी ऊर्जा बचत करता है तो डेटा दर और संचार की सीमा दोनों में कमी आती है। आईआईटी मंडी टीम ने इन दो तकनीकों की पूरक प्रकृति का लाभ उठाया है और सावधानी से दोनों को जोड़ कर सिस्टम को आवंटित पावर का उपयोग करते हुए सेवा की गुणवत्ता (क्यूओएस) और दक्षता का वांछित स्तर प्राप्त किया है।
प्रवक्ता ने बताया कि शोध के तकनीकी पहलुओं के बारे में डॉ. सिद्धार्थ सरमा, सहायक प्रोफेसर, आईआईटी मंडी ने बताया, ”हम ने दो डिवाइस के लिए एक डेडिकेटेड पावर ट्रांसमीटर का उपयोग किया, जिसमें सूचना संचार का कार्य बैकस्कैटर डिवाइस ने एक मोनोस्टैटिक कॉन्फिग़रेशन और आरएफईएच डिवाइस ने एचटीटी प्रोटोकॉल के माध्यम से किया। टीम ने व्यापक संख्यात्मक सिमुलेशन करते हुए वर्तमान स्कीम की तुलना में प्रस्तावित कॉपरेटिव मॉडल को श्रेष्ठ साबित किया। इन सिमुलेशनों में प्रमुख पैरामीटरों में अंतर करते हुए मॉडल के प्रदर्शन का सटीक विश्लेषण किया गया।ÓÓ
उन्होंने कहा कि शोधकर्ताओं की योजना सिस्टम के प्रदर्शन के विश्लेषण के लिए वास्तविक समय में संयुक्त रेडियोफ्रीक्वेंसी एनर्जी हार्वेस्टिंग-बैकस्कैटर संचार सिस्टम लागू करने की है। इसमें दो पूरक प्रौद्योगिकियों के हार्डवेयर पहलुओं पर काम करना शामिल होगा। प्रस्तावित सिस्टम में है असीम क्षमता और साथ ही, बैटरी- फ्री वायरलेस कैमरे, वायरलेस मॉनिटर, सेंसर, स्किन-अटैचेबल सेंसिंग प्लेटफॉर्म, कॉन्टैक्ट लेंस, मशीन-टू-मशीन कम्युनिकेशन और मनुष्य-से-मनुष्य संवाद जैसे कई अन्य उपयोग की क्षमता।