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आईआईटी मंडी की शोध टीम मिट्टी के बैक्टीरिया से मिट्टी के स्थिरीकरण की प्रक्रियाएं विकसित की

मंडी : आईआईटी मंडी के शोधकर्ता मिट्टी के स्थिरीकरण की स्थायी तकनीक विकसित करने की दिशा में कार्यरत हैं। इसमें वे नुकसान नहीं करने वाले बैक्टीरिया एस. पाश्चरी का उपयोग कर रहे हैं जो यूरिया को हाइड्रोलाइज कर कैल्साइट बनाते हैं। यह जानकारी आईआईटी मंडी के एक प्रवक्ता ने दी। उन्होंने बताया कि इस प्रक्रिया में खतरनाक रसायन इस्तेमाल नहीं होता है और प्राकृतिक संसाधनों का सतत उपयोग किया जा सकता है। शोधकर्ता टीम के निष्कर्ष हाल में ‘जीयोटेक्निकल एण्ड जीयो-इन्वायरनमेंटल इंजीनियरिंग ऑफ अमेरिकन सोसाइटी ऑफ सिविल इंजीनियर्स (एएससीई)Ó नामक जर्नल में प्रकाशित किए गए हैं। शोध के प्रमुख डॉ. कला वेंकट उदय और सह-लेखक उनके एमएस स्कॉलर दीपक मोरी हैं।
प्रवक्ता ने बताया कि मिट्टी का स्थिरीकरण कृत्रिम उपाय से लंबी अवधि के लिए स्थायी तौर पर मिट्टी की पकड़ मजबूत बनाने की प्रक्रिया है। मिट्टी अस्थिर हो या फिर मिट्टी को कटने से बचाना के लिए यह बेहतर उपाय साबित होता है। आम तौर पर इसके लिए यांत्रिक प्रक्रियाएं जैसे कि संपीडऩ और रासायनिक प्रक्रियाएं अपनाई जाती हैं जैसे कि मिट्टी में रसायनिक ग्राउट तरल पदार्थ डाल कर मिट्टी को स्थिर करने का प्रचलन रहा है।
पिछले कुछ दशकों में पूरी दुनिया में मिट्टी के स्थिरीकरण की पर्यावरण अनुकूल और स्थायी तकनीक-माइक्रोबियल इंड्यूस्ड कैल्साइट प्रेसिपिटेशन (एमआईसीपी) पर परीक्षण हो रहे हैं। इसमें बैक्टीरिया का उपयोग कर मिट्टी के सूक्ष्म छिद्रों में कैल्शियम कार्बोनेट (कैल्साइट) बनाया जाता है जो अलग-अलग कणों को आपस में मजबूती से जोड़ता है जिसके परिणामस्वरूप मिट्टी/जमीन की पकड़ मजबूत होती है।
स्कूल ऑफ इंजीनियरिंग के सहायक प्रोफेसर डॉ. के वी उदय ने अपने इस शोध के बारे में बताया, ”हमारा शोध माइक्रोब की मदद से जमीनी स्तर पर मिट्टी की पकड़ मजबूत करने में मदद करेगा। इससे पहाड़ी क्षेत्रों में और भू-आपदा के दौरान मिट्टी का कटाव कम होगा। हम माइक्रोब की मदद से खदान के कचरे से निर्माण सामग्री तैयार करने की दिशा में भी काम कर रहे हैं। इस सिलसिले में डॉ. के.वी. उदय ने बताया, ”मिट्टी के स्थिरीकरण के उद्देश्य से पूरी दुनिया में एमआईसीपी तकनीक विकसित करने के अध्ययन हो रहे हैं लेकिन अब तक इस प्रक्रिया की सक्षमता को प्रभावित करने वाले कारकों को पूरी तरह समझा नहीं गया है।ÓÓ
उन्होंने कहा कि शोधकर्ताओं ने एस. पाश्चरी नामक नुकसान नहीं पहुंचाने वाले बैक्टीरिया का उपयोग किया है जो यूरिया को हाइड्रोलाइज कर कैल्साइट बनाता है। खास कर यूरिया का उपयोग इसलिए उत्साहजनक है क्योंकि इसमें खतरनाक रसायन नहीं हैं और इससे प्राकृतिक संसाधनों का स्थायी रूप से समुचित उपयोग संभव होगा। इस प्रयोग में रेत का कॉलम बना कर उससे बैक्टीरिया और यूरिया, कैल्शियम क्लोराइड, पोषक तत्व आदि से मिल कर तैयार सीमेंटिंग सॉल्यूशन को प्रवाहित किया गया।
शोध के बारे में दीपक मोरी, रिसर्च स्कॉलर, आईआईटी मंडी ने बताया, कैल्साइट प्रेसिपिटेशन एफिसियंसी (सीपीई) कई मानकों पर निर्भर करती है जिनमें सीमेंटिंग सॉल्यूशन का कंसंट्रेशन, कॉलम से होकर प्रवाह की दर, लागू आपूर्ति दर, पोर वॉल्यूम और रेत के कणों के मुख्य गुण शामिल हैं। हम ने सीपीई पर विभिन्न मानकों के प्रभाव जानने की कोशिश की।ÓÓ
प्रवक्ता ने बताया कि शोधकर्ताओं ने इसमें अपनाए गए विभिन्न मानकों के मद्देनजर तागुची पद्धति से एमआईसीपी से मिट्टी की पकड़ मजबूत करने के विभिन्न मानकों के प्रभावों का विश्लेषण किया। इस पद्धति में किसी प्रक्रिया को प्रभावित करने वाले मानकों को व्यवस्थित करने और जिस स्तर पर उनमें विविधता चाहिए उनके लिए ओर्थोगोनल ऐरेज़ का उपयोग किया जाता है। तागुची पद्धति से कई प्रयोग किए बिना प्रभावशाली मानकों का विश्लेषण किया जा सकता है। शोधकर्ताओं ने पाया कि कैल्साइट कितनी मात्रा में बनता है यह उतना महत्वपूर्ण नहीं है जितना इस प्रक्रिया में छिद्रों में बने कैल्साइट ग्रेन का आकार और स्थान। सीमेंटिंग सॉल्यूशन का कंसंट्रेशन अधिक होने के परिणामस्वरूप अधिक मजबूत पकड़ बनी। इसी तरह सीमेंटिंग सॉल्यूशन की प्रवाह दर और आपूर्ति दर ने भी पकड़ की मजबूती को प्रभावित किया। इन मानकों के लिए एक ऑप्टिमम वैल्यू था जो अधिकतम कैल्साइट और इस तरह सबसे अधिक मजबूत पकड़ बनाने में सक्षम था।