॥> बागियों की इतनी बड़ी फौज, कमजोर नेतृत्व या टिकटों के गलत चयन का परिणाम?

सम्पादक, ग्राम परिवेश
हिमाचल भाजपा की बगिया में विगत पांच वर्षों में एक अच्छा माली ना होने के कारण दो दशकों की मेहनत से उगाए फूल के चारों ओर कांटेदार झाडिय़ां उग आई है। जो फूल को ठीक तरह से खिलने में बड़ी बाधा पैदा कर रही है। भाजपा में जिस तरह बगावत हुई है वह अप्रत्याशित है।
प्रदेश में विधानसभा की 68 सीटों में से 25 सीटों पर भाजपा के मजबूत बागी खड़े हैं। इन बागियों को शांत करने के लिए भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जे.पी. नड्डा, केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर व अन्य राष्ट्रीय स्तर के नेताओं ने एडी चोटी का जोर लगाया परंतु एक या दो बागियों को छोड़ सभी ने भाजपा नेताओं को आंखे दिखाई और चुनाव में डटे रह कर कम से कम भाजपा को हराने का संकल्प ले लिया है।
इन बागियों में भाजपा के पूर्व राज्य सभा सांसद व पूर्व प्रदेशाध्यक्ष कृपाल परमार का कहना है कि वह फतेहपुर से भाजपा उम्मीदवार राकेश पठानिया को मालविका पठानिया बना कर छोड़ेंगे अर्थात जमानत जब्त करवाएंगे, परमार यह कर पाते हैं या नहीं यह वक्त बताएगा लेकिन उनका संकल्प कांगड़ा जिला की अन्य सीटों पर भाजपा के उम्मीदवारों को कठिन परिस्थिति में डाल रहा है। इसी तरह के संकल्प के साथ बड़सर विधानसभा क्षेत्र से पूर्व में किसान मोर्चा के अध्यक्ष व कामगार बोर्ड के पूर्व अध्यक्ष स्व. राकेश बबली के भाई संजीव कुमार भी चुनावी रण में उतर गए है। भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जे.पी. नड्डा के अपने गृह क्षेत्र से सुभाष शर्मा नड्डा के आग्रह को ठुकरा कर चुनावी अखाड़े में है। मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर के गृह जिला में कम से कम तीन बागी नाचन, मंडी सदर व सुंदरनगर से भाजपा की राह में कांटे डाल रहे हैं। किन्नौर जिला की इकलौती सीट पर पूर्व विधायक तेजवंत नेगी अपने सियासी गुरु जे.पी. नड्डा की अपील को ठुकरा कर मैदान में डट गए हैं।

सियासी पंडितों का कहना है कि भाजपा जैसी अनुशासित व मजबूत नेतृत्व वाली पार्टी में इतने बड़े पैमाने पर बगावत कैसे हुई? क्या भाजपा के सर्वे में हेराफेरी हुई या प्रदेश से संबंध रखने वाले नेताओं ने अपने-अपने चहेतों के टिकट की पैरवी करी, सही उम्मीदवार नजरअंदाज किया या फिर सोचा कि मोदी हैं तो जीत निश्चित है। कुछ राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि विगत पांच वर्षों में माली ने ही चमन उजाड़ दिया।
भाजपा के कुछ नेता यह भी कह रहे हैं कि पूर्व मुुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल को नजरअंदाज करना भी भाजपा में अनुशासनहीनता का कारण है। अब कारण कोई भी हो 68 में से 25 सीटों पर संकल्पित भाजपा बागियों का लडऩा, चार सीटों शिमला, कसुम्पटी, देहरा व ज्वालाजी में उम्मीदवारों के चयन में भारी भूल करना भाजपा को विधानसभा चुनावों में बैकफुट पर धकेल रहा है। हां भाजपा के करिश्माई नेता प्रधानमंत्री मोदी जब तक हैं तो कुछ भी मुमकिन है। बाकि प्रदेश के नेता तो मंचों पर आंसू ही बहा रहे हैं।
साभार : ग्राम परिवेश