भारत में हर क्षेत्र विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी पर निर्भर : डॉ. जितेंद्र सिंह

केंद्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी और पृथ्वी विज्ञान राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार) एवं पीएमओ, कार्मिक, लोक शिकायत, पेंशन, परमाणु ऊर्जा और अंतरिक्ष राज्यमंत्री डॉ. जितेंद्र सिंह ने आज कहा कि भारत में हर क्षेत्र विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी पर निर्भर हो गया है, लेकिन जो कमी है वह क्षेत्र-विशेष की समस्याओं और स्टार्टअप एवेन्यूज के लिए उपयुक्त प्रौद्योगिकी अनुप्रयोगों के संबंध जागरूकता फैला रहा है।

एक न्यूज एजेंसी को दिए इंटरव्यू में डॉ. जितेंद्र सिंह ने कहा कि केंद्र सरकार के कई मंत्रालय और विभाग खास समस्याओं के लिए काफी किफायती तरीके से वैज्ञानिक अनुप्रयोगों और समाधानों का लाभ उठा सकती है। उन्होंने इस बात को दोहराया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हमेशा आमजन के लिए ‘ईज ऑफ लिविंग’ लाने के लिए साइलो में काम करने के बजाय एकीकृत दृष्टिकोण पर जोर देते हैं।


डॉ. जितेंद्र सिंह ने कहा कि लीक से हटकर कार्य करने के मोदी के दृष्टिकोण से संकेत विज्ञान से संबंधित सात अलग-अलग विभागों और मंत्रालयों, अर्थात् विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी, जैव प्रौद्योगिकी, वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद (सीएसआईआर), पृथ्वी विज्ञान, भारत मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी), परमाणु ऊर्जा और अंतरिक्ष ने कृषि, जल शक्ति, रेलवे, स्वास्थ्य, राजमार्ग, आदि जैसे मंत्रालयों के साथ लेकर हाल में विचार-मंथन सत्र आयोजित किए।

डॉ. जितेंद्र सिंह ने बताया कि वैज्ञानिक अनुप्रयोगों और तकनीकी सहायता और समाधान के लिए 38 संबंधित मंत्रालयों/विभागों से 200 से अधिक प्रस्ताव/मांगे आई मिली थीं। उन्होंने कहा कि संबद्ध विज्ञान के मंत्रालय और विभाग कृषि, भूमि मानचित्रण, डेयरी, भोजन, शिक्षा, कौशल, रेलवे, सड़क, जल शक्ति, बिजली, कोयला और सीवेज सफाई जैसे विभिन्न वैज्ञानिक समाधानों के लिए कार्य कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि पिछली ऐसी बैठकों से संबंधित मंत्रालयों के लिए प्रस्तावों और समस्याओं के लिए वैज्ञानिक अनुप्रयोगों की पहचान में तेजी लाने के लिए विज्ञान विभागों और संबंधित मंत्रालयों के साथ संयुक्त कार्य समूह स्थापित किए जा रहे हैं।

मंत्री ने बताया कि सीएसआईआर-एनजीआरआई हैदराबाद द्वारा विकसित भूजल प्रबंधन के लिए जल शक्ति मंत्रालय ने अत्याधुनिक हेली-बोर्न सर्वेक्षण प्रौद्योगिकी पिछले साल लांच किया था। उन्होंने कहा कि शुरुआत में राजस्थान, गुजरात, पंजाब और हरियाणा इस नवीनतम हेली-बोर्न सर्वेक्षण को अपना रहे हैं और उम्मीद जताते हैं कि यह प्रौद्योगिकी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के विजन और ’हर घर नल से जल’ मिशन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगी। उन्होंने कहा कि व्यापक प्रसार के लिए सीएसआईआर द्वारा विकसित यंत्रीकृत सीवेज सफाई प्रणाली स्वच्छ भारत मिशन के लक्ष्य को हासिल करने में मदद करेगी।

डॉ. जितेंद्र सिंह ने कहा कि खेतों में सिंचाई, कीटनाशकों के छिड़काव और खाद डालने के लिए ड्रोन प्रौद्योगिकी का इस्तेमाल कृषि में किया जा रहा है और इससे किसानों को खेती लागत में बचत होती है। इसी तरह, अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी का उपयोग टेलीमेडिसिन, कृषि में सूखे की मैपिंग करने और रेलवे मानवरहित क्रासिंग को दुरुस्त करने और संभावित दुर्घटनाओं की रोकथाम करने के लिए किया जा रहा है। मंत्री ने कहा कि उन्होंने विभिन्न विभागों के वैज्ञानिकों और अधिकारियों मेडिसिन और सर्जरी में आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस और रोबोटिक्स का उपयोग करने का निर्देश दिया है। उन्होंने सीएसआईआर द्वारा विकसित और संसद में स्थापित यूवी प्रौद्योगिकी का भी उल्लेख किया। अब इसका उपयोग रेलवे से लेकर कोविड-19 वायरस के प्रसार की रोकथाम के लिए किया जाने लगा है।

एक सवाल का जवाब देते हुए डॉ. जितेंद्र सिंह ने कहा कि प्रत्येक राज्य और केंद्र शासित प्रदेश को उन क्षेत्रों की पहचान करने के लिए कहा गया है जहां प्रौद्योगिकी हस्तक्षेप से आम आदमी की विभिन्न समस्याओं का समाधान करने में मदद मिल सकती है। उन्होंने कहा कि उदाहरण के लिए, जम्मू और कश्मीर की केंद्र शासित प्रदेश सरकार को डल झील में बर्फ हटाने के लिए नवीनतम प्रौद्योगिकी के माध्यम से मदद की जाएगी, जबकि पुडुचेरी और तमिलनाडु को समुद्र-तट के जीर्णोद्धार और नवीनीकरण में मदद की जा रही है। उन्होंने कहा कि जम्मू-कश्मीर में एरोमा मिशन और लद्दाख में लेह बेरी का संवर्धन, सबकुछ स्थानीय स्थायी स्टार्ट-अप को प्रोत्साहन देने के अलावा वैज्ञानिक हस्तक्षेप और लाखों रोजगार के अवसर पैदा करने के लिए हो रहा है।

डॉ. जितेंद्र सिंह ने कहा कि अंतरिक्ष के क्षेत्र को निजी कारोबारियों के लिए खोले जाने के बाद अप्रयुक्त क्षमता का पता लगाने के लिए बड़े स्तर पर नवोन्मेषी स्टार्ट-अप आ रहे हैं। उन्होंने कहा कि अंतरिक्ष क्षेत्र में 50 से अधिक स्टार्ट-अप काम कर रहे हैं और उनमें से करीब 10 के पास व्यक्तिगत रूप से 50 करोड़ या उससे अधिक का कोष है। मंत्री को यह जानकर प्रसन्नता हुई कि एनएवीआईसी-आधारित अनुप्रयोगों के अलावा, स्टार्ट-अप वैश्विक प्रभाव के क्षेत्र में मलबे के प्रबंधन के लिए सॉफ्टवेयर समाधान पर भी काम कर रहे हैं। इसी तरह, परमाणु ऊर्जा क्षेत्र के संयुक्त उद्यमों के साथ सार्वजनिक उपक्रम परमाणु ऊर्जा संयंत्रों के जरिये ऊर्जा की मांग को बढ़ाने में मदद करेंगे।