वफा का सिला बर्खास्तगी!

॥> उम्रभर लड़ा तेरी आबरू के लिए ऐ कांग्रेस, आज मुझे ही बेआबरू कर दिया

मोहिन्द्र प्रताप सिंह राणा
सम्पादक, ग्राम परिवेश

राजेन्द्र ज़ार जैसे कांग्रेस के निष्ठावान सिपाही को पार्टी विरोधी गतिविधियों का कलंक लगा कर पार्टी से बर्खास्त करना हमीरपुर के कांग्रेसी ही नहीं बल्कि अन्य सियासी दलों के लोगों को भी शायद ही हजम हो रहा होगा। हमीरपुर में शायद ही ऐसा कोई व्यक्ति होगा जो यह नहीं जानता होगा कि ज़ार ने कांग्रेस पार्टी की मशाल अपने खून से दशकों से जलाई रखी।

वर्ष 1977 में जब डॉ. पुष्पेन्द्र सिंह वर्मा के पिता रणजीत सिंह वर्मा कांग्रेस को गाली देते और कोसते हुए कोसों दूर निकल जाते थे उस समय राजेन्द्र ज़ार गांव में अपने चंद साथियों के साथ पदयात्रा करते हुए कांग्रेस की अलख जगाते थे। यह राजेन्द्र ज़ार ही है जिनकी वजह से वर्ष 1977 में कांग्रेस विरोधी जनता हमीरपुर में यह नहीं कह पाई थी कि ‘एक कांगे्रसी बताओ हजार रुपया पाओ’।

राजेन्द्र ज़ार ने वर्ष 1985 में कांग्रेस टिकट न मिलने पर भी पार्टी के खिलाफ काम नहीं किया और कांगे्रसी उम्मीदवार के साथ कंधे से कंधा मिलाकर काम किया। वर्ष 1996 में राजेन्द्र ज़ार अपने आका माधवराव सिंधिया द्वारा कांग्रेस छोडऩे पर भी कांग्रेस पार्टी का झंडा उठाना ठीक समझा। राजेन्द्र ज़ार ने वर्ष 1998 में पंडित सुखराम के लाख कहने पर भी हिविकां का दामन नहीं थामा।

राजेन्द्र ज़ार को कई बार कांग्रेस के बड़े नेताओं ने जलील किया उन्हें कांग्रेस छोडऩे को मजबूर किया लेकिन वह पार्टी में डटे रहे और अपने हिस्से का योगदान पार्टी के लिए करते रहे। प्रदेश कांग्रेस के प्रभारी राजीव शुक्ला, जिनके ऊपर भी कांग्रेसी उंगलियां उठा रहे हैं, को ज़ार की बर्खास्तगी का फरमान जारी करने से पहले सोचना चाहिए था। अगर सियासत रिश्तों की धुरी पर चलती तो मंडी से भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ रहे अनिल शर्मा के बेटे कांग्रेस से या जब बेटा कांग्रेस के टिकट पर लोकसभा चुनाव लड़ रहा था अनिल शर्मा को भाजपा से निकाल देना चाहिए था। राजेन्द्र ज़ार हर परिस्थिति में कांग्रेस के निष्ठावान ‘फुट सोलज़र’ रहे हैं उनको इस तरह अपमानित करके निकालना कांग्रेस के कार्यकत्र्ताओं को निउत्र्साहित कर सकता है।

साभार : ग्राम परिवेश

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