
सम्पादक, ग्राम परिवेश
1962 से लेकर 2017 तक प्रदेश में ऐसा कोई भी विधानसभा चुनाव नहीं हुआ जिसमें कांग्रेस का नेतृत्व काबिल सेनापति ने नहीं किया। 2022 के चुनाव में कांग्रेस क्षेत्रीय सूबेदारों के बल पर ही लड़ रही है और इन सूबेदारों की ताकत है कांग्रेस के फुट सोल्जर।
कांग्रेस 2022 के चुनावों में बिना सेनापति और सीमित साधनों के जो प्रदर्शन कर रही है वह राष्ट्रीय कांग्रेस के लिए अभिपे्ररणात्मक है। हिमाचल में कांग्रेस के पास ओ.पी.एस. का जबरदस्त बारूद का ढेर है जिसमें केंद्र सरकार की अग्निपथ योजना चिंगारी का काम कर रही है।
भाजपा भले ही इस मुद्दे को गौण करके प्रस्तुत करने का भरसक प्रयास कर रही है परंतु जमीनी स्तर पर यह ओ.पी.एस. उन परिवारों को भी आकर्षित कर रहा है जिनके बच्चे अभी स्कूल कॉलेज में पढ़ रहे हैं।
वास्तव में हिमाचल प्रदेश विशेषतौर पर पुराना जिला कांगड़ा जिसमें ऊना, हमीरपुर, कांगड़ा, कुल्लू, लाहौल स्पीति और पुराने हिमाचल में बिलासपुर व मंडी जिला 1970-े1975 तक कृषि के साथ साथ पोस्टल इकोनोमी के लिए प्रसिद्ध रहा है। इन जिलों के पुरूष फौज में नौकरी करते थे या बाहरी राज्यों के बड़े व छोटे वाणिज्य संस्थानों पर नौकरियां करते और हर महीने घर मनीऑर्डर भेजा करते थे। 1975-1980 के बाद लोगों की आर्थिक स्थिति ज्यादातर पैंशन इकॉनोमी पर निर्भर है इसलिए हर परिवार चाहे उनके बच्चे नौकरी में हैं या नहीं, वह सब पैंशन के पक्षधर हैं। कांग्रेस इस मुद्दे को भुनाने में कामयाब होती नजर आ रही है। कांग्रेस के कार्यकत्र्ता 18 से 60 वर्ष की महिलाओं को 1500 रूपए प्रतिमाह देने की गारंटी पर भी भरोसा करवाने में काफी हद तक सफल हो रहे हैं। भाजपा में हुई बगावत ने कांग्रेस के फुट सोल्जर का मनोबल शिखर पर पहुंचा रखा है ऐसा नहीं कांग्रेस में बगावत नहीं है। कांग्रेस की बगावत व भीतरघात भाजपा की तुलना में कम व असरहीन लगता है। उसका कारण है कि इस बार ऐसा सेनापति नहीं है जिसके इशारे पर खेल का रूख बदल जाए। सब प्रत्याशी अपने-अपने क्षेत्र में दमखम से लगे हुए हैं।
कांग्रेस की नई पीढ़ी इस बार चुनावी रण में हैं। भले ही वह गहरे सियासी दांव पेचों से परिचित न हो परंतु जोश व जज्बे से भरी हुई है। जनता उन पर इसलिए भी भरोसा कर रही है कि वह युवा हैं और जो कह रहे हैं उसको जमीन पर उतारेंगे न कि बस चुनावी जुमले जनता में फैंकेगे और पांच साल सत्ता का सुख भोगेंगे। यद्यपि हिमाचल प्रदेश का सबसे बड़ा मुद्दा चरघातांकीय ऋण (Exponential) है, यह ऋण हर माह हर हिमाचली पर बढ़ता जा रहा है और अगर कांग्रेस को सभी चुनावी गारंटियां पूरी करनी है तो ऋण के अलावा पार्टी ने अभी कोई खाका नहीं रखा है। कांग्रेस के पास इन गारंटियों को पूरा करने की योजना होना जरूरी है, नहीं तो पहाड़ी में कही जाने वाली कहावत ”आगे दौड़ पीछे चौड़” चरितार्थ होगी।
साभार : ग्राम परिवेश