76 प्रतिशत मतदान गारंटी पत्र या दृष्टि पत्र को पता चलेगा 8 दिसम्बर को

॥> क्या सियासी दल लुभा पाए हिमाचलियों को या वह डटे रहे अपने मुद्दों पर?

मोहिन्द्र प्रताप सिंह राणा
सम्पादक, ग्राम परिवेश

हिमाचल प्रदेश के 75 प्रतिशत मतदाताओं ने मतदान केंद्र पर जाकर और लगभग 2 प्रतिशत मतदाताओं ने डाक द्वारा मत डालकर शनिवार को प्रजातंत्र के उत्सव में भाग लेकर अपने अगले पांच सालों के लिए सरकार बनाने का फैसला ईवीएम में दर्ज कर दिया। प्रदेश में लगभग 77 प्रतिशत मतदाताओं ने अपने मताधिकार का प्रयोग किया है जो अपेक्षकृत लगभग 8 प्रतिशत कम है। प्रदेश में चुनाव से पहले जो लोगों में जोश और जुनून था और जो चुनाव आयोग ने कड़ी मेहनत व गहन जांच पड़ताल कर वोटों के दोहराव को छाना और 18 वर्ष पार किए युवक व युवतियों को वोटर सूची में जोड़ा उससे ऐसा अनुमान लगाया जा रहा था इस बार 2017 के मतदान से 7 या 8 प्रतिशत अधिक मतदान होगा।

‘ग्राम परिवेश’ ने 7-8 प्रतिशत कम हुए मतदान के बारे जानने के लिए लोगों से बात की जिसमें लोगों ने कहा कि दोनों मुख्य राजनीतिक दलों के पास डॉ. यशवंत सिंह परमार, शांता कुमार, वीरभद्र सिंह व प्रो. प्रेम कुमार धूमल जैसा दूरदर्शी और सुलझा नेता नहीं है, दूसरा लोग मानते हैं कि दोनों पार्टियों द्वारा मैदान में उतारे प्रत्याशियों में से अधिकतर उनकी समस्याओं व प्रदेश के विकास की लय को बरकरार रखने की पूरी सूझबूझ नहीं रखते हैं। यही कारण रहा कि शुरूआत में मतदान की गति काफी कम थी। मतदाता पोलिंग बूथ पर जाने से पहले अपने मित्रों व परिजनों से विचार विमर्श करते रहे। अंत में अपना लोकतांत्रिक कर्तव्य निभाने के लिए आधे मन से अंधों में काना राजा ढूंढने निकल गए परंतु कुछ जो नोटा डालना चाहते थे उन्होंने घर रहना ही ठीक समझा।

राजनीतिक दलों ने पहाड़ी मतदाताओं को लुभाने के लिए तरह-तरह के पाश फैंके, उन्हें भरोसा दिलवाने के लिए गारंटी पत्र परोसे, अपने चमचमाते दृष्टिपत्र पेश किए, उनको अपना होने का अहसास करवाने के दांव खेले परंतु हिमाचली मतदाता सहज और सरल होने के साथ-साथ समझदार और सजग भी है। वह अपने मुद्दों व प्रश्नों का हल ढूंढने के लिए हर राजनीतिक दल की रैली व नुक्कड़ सभा में गया तो जरूर लेकिन उसके सवालों का जवाब नहीं मिला। मत देकर लौटीं बहुत सी महिलाएं, पुरुष एवं नवयुवक व युवतियों ने अपने प्रश्रों के उत्तर न पाने पर प्रत्याशियों और उनके आकाओं से नाराज दिखीं। बड़े बुजुर्ग एनपीएस, अग्निपथ, ठेके पर नौकरी देने वाली नई योजनाओं में अपने बच्चों के भविष्य को ढूंढते-ढूंढते थके हारे नजर आ रहे थे। महिलाएं अपनी कोख की लौ को इन योजनाओं के अंधकार में भटकता हुआ देख रही थी, युवक व युवतियां अपने माता-पिता को बिना पैंशन के बुढ़ापे में दर-ब-दर भटकते पा रहे थे। बुजुर्गों के चेहरों पर परेशानी झलक रही थी तो युवाओं की आंखों में आक्रोश था। इन नीतियों के चलते इस बार तो राजनीतिक विचारधाराओं में तपे व पके कार्यकत्र्ता भी डमाडोल दिखे।

चुनाव में जो मुद्दा हावी रहा वह पैंशन का था। नई पैंशन स्कीम और अग्निपथ योजना ने उन लोगों को भी विचलित किया हुआ था जिनका कोई अपना वर्तमान में नौकरी में नहीं है या नौकरी पाने के लिए भटक रहा है। राजनीतिक दलों की मौजूदा पीढ़ी को एक बात समझने की जरूरत है कि हिमाचल प्रदेश, कठिन भौगोलिक परिस्थितियों और कम होती भूजोत के बाद भी क्यों बाकि राज्यों की तुलना में बेहतर है?

प्रथम विश्वयुद्ध से पहले हिमाचल राज्य जिसमें नए व पुराने हिमाचल के हिस्से शामिल है की आर्थिकी मात्र कृषि पर ही निर्भर थी लेकिन विश्वयुद्ध के दौरान बहुत से तत्कालीन नौजवानों ने फौज में जाकर अंग्रेजों के लिए हथियार उठाए और घर पर महिलाओं ने कृषि के औजार उठाए दोनों के हौंसले और परिश्रम से एक सदी पहले नई आर्थिकी की नींव रखी गई और आजादी के बाद डॉ. परमार, शांता, वीरभद्र व धूमल ने इस नीवं पर मजबूत इमारत खड़ी करने का प्रयास किया जिसके चलते हिमाचली आज बाकियों से बेहतर है लेकिन विगत वर्षों में पहाड़ी राज्य के इस आर्थिक ताने-बाने को राजनीतिक दलों ने उलझा दिया है। नई पीढ़ी के सियासतदानों को जो भी 8 दिसम्बर को सरकार बनाता है इस कठिन चुनौती से जूझना पड़ेगा। अगर वह ऐसा करने में असमर्थ हुए तो जनता के आक्रोश का लावा फूटेगा।

साभार : ग्राम परिवेश

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